वाराणसी के तुलसी घाट पर गंगा किनारे ध्रुपद महोत्सव शुरू, पहले दिन पखावज गूंजा
ध्रुपद गायन के चार दिवसीय महानुष्ठान का आगाज मंगलवार को तुलसीघाट स्थित ध्रुपद तीर्थ पर हुआ। कुंवर अनंत नारायण , संयोजक एवं संकटमोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र एवं आयोजन समिति के संस्थापक सदस्य पद्मश्री प्रो. राजेश्वर आचार्य ने वैदिक मंगलाचरण के बीच दीप प्रज्ज्वलित कर 46वें ध्रुपद मेला का शुभारंभ किया। पहली निशा की शुरुआत लखनऊ के वरिष्ठ कलाकार पं. राजखुशी राम के स्वतंत्र पखावज वादन से हुई। उन्होंने मां गंगा व बाबा विश्वनाथ को नमन करते हुए चौताल में निबद्ध गुरु वंदना की अवतारणा की। उनके अंदाज और भागभंगिमा पर सुधिजन मुरीद हो गए। पखावज पर बोलों की निकास खास रही। सारंगी पर गौरी बनर्जी ने संगत की।
द्वितीय प्रस्तुति रही जयपुर विश्वविद्यालय की प्रो. मधु भट्ट तैलंग की। विख्यात कलाकार पं. लक्ष्मण भट्ट तैलंग की सुपुत्री एवं शिष्या प्रो. मधु ने आरंभ राग जोगश्री में आलापचारी से किया। धमार ताल में निबद्ध रचना के बोल थे- नंदलाल के साथ होरी...। सूल ताल में निबद्ध रचना के बोल थे- जोगी महादेव...। समापन राग गोरख कल्याण में शिव स्तुति से किया। बोल थे- भज शिव ओंकार...। पखावज पर अंकित पारिख, हारमोनियम पर पं. जमुना बल्लभ गुजराती, तानपुरे पर आदित्य धनराज पांडेय और दीपक शर्मा ने संगत की।
अगली प्रस्तुति पं. देवव्रत मिश्र के सुरबहार की रही। उन्होंने राग मधुकौंस में आलाप के बाद चौताल में निबद्ध ध्रुपद रचना को धुनों में पिरोया। पखावज पर अदित्यदीप एवं तानपुरे पर वेड इवांस ने संगत की। देर रात में विदेशी कलाकार चियारा बरबेरी, निखिल घोरपड़कर, धानी गुंदेचा, रवींद्रनारायण गोस्वामी सहित आधा दर्जन से अधिक कलाकारों ने हाजिरी लगाई।
गोपाल पांडेय ने अतिथियों का माल्यार्पण कर अभिनंदन किया। संचालन डॉ. प्रीतेश आचार्य एवं सौरभ चक्रवर्ती ने किया।
मेला की शुरुआत कराने वालों का स्मरण
अतिथियों ने ध्रुपद मेला की शुरुआत कराने वाले पूर्व काशी नरेश डॉ. विभूतिनारायण सिंह, महंत प्रो. वीरभद्र मिश्र, प्रो. लालमणि मिश्र का स्मरण किया। चौथी पीढ़ी में संकटमोचन मंदिर के वर्तमान महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र इस आयोजन का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने इसकी निरन्तरता की कामना की। संस्थापक सदस्य पद्मश्री प्रो. राजेश्वर आचार्य ने इस मेला को शाश्वत यात्रा की विरासत बताया।